लेखनी कविता -गुलशन में बंदोबस्त ब-रंग-ए-दिगर है आज - ग़ालिब

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गुलशन में बंदोबस्त ब-रंग-ए-दिगर है आज / ग़ालिब गुलशन में बंदोबस्त ब-रंग-ए-दिगर है आज क़ुमरी का तौक़ हल्क़ा-ए-बैरून-ए-दर है आज आता है एक पारा-ए-दिल हर फ़ुग़ाँ के साथ तार-ए-नफ़स कमंद-ए-शिकार-ए-असर है ...

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